गुरुवार, 9 सितंबर 2010


अभिनय
अरे अभिनेता
तुम अभिनय को, अपने द्वारा निभाये गये पात्र को
वास्तविक न मानने लगना
तब अभिनय भी एक ऐसा नशा हो जायेगा
जो जीवन के वास्तविक रूप को हटाकर
कहीं और व्यस्त कर देता है दिमाग को
और कुछ समय के लिये
व्यक्ति जो नहीं है वह होने का भ्रम पाल लेता है।
जैसे कुछ लोग साधुता का अभिनय कर लेते हैं
वास्तविक जीवन में और
अपने को वास्तव में साधु समझने लगते हैं।
दुनिया की रंगभूमि से भागने वाले
ऐसे लोग साधुता का केवल चोगा ही पहन सकते हैं
सन्यस्त होने का केवल अभिनय ही कर सकते हैं।
अभिनेता वहाँ मंच पर अभिनय करते हैं
वे वास्तविक जीवन में रूप बदले रहते हैं
छलिया बने रहते हैं
पर छलते तो वह खुद को ही हैं।
उन्हे अगर वास्तव में संतत्व मिल गया होता
तो क्या हर चिन्ता, हर काम को
चिलम में भरे गाँजे के धुँए में उड़ाते रहते?
जब जब जिम्मेदारियों ने सिर उठाया
ये कहकर आँखें बन्द कर लीं उन्होने कि
ध्यान लगाना है, सत्य को खोजना है
ये संसार तो माया है और जीवन नश्वर है।
अपनी चिलम तो कभी भ्रम न लगी उन्हे?
गाँजे की शान्ति को तो असली मानते रहे।
अभिनेता तुम भी किसी भ्रम में अपने को मत डाल लेना
अभिनय चाहे किस भी रंग रूप का करो पर
अपने वास्तविक रूप को न भूल जाना।

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