अंधविश्वIस

पीपल के पेड़ पर भूत-पिशाच रहते हैं, यह अंधविश्वस हमारे भारतीय समाज में बहुत अधिक जड़ें जमाया हुआ है। परंतु यह कम ही लोगों को पता होगा कि विश्व भर के वृक्षों में यह सबसे अधिक मात्रा में आक्सीजन उत्पन्न करता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रकृति की यह अनुपम देन प्रति घंटे 1,700 किलोग्राम आक्सीजन उत्सर्जित करता है। यानी पर्यावरण शुद्धि में पीपल का अत्यधिक महत्व है। इसके अलावा यह वृक्ष अपनी घनी छाया और सुंदरता के लिए भी विख्यात है।
पीपल के बारे में धार्मिक मान्यता है कि इसकी जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों में महेश का वास होता है। इसीलिए अनेक पूजा विधियों एवं धार्मिक अनुष्ठानों में पीपल के नीचे दीपक जलाने और उसकी पूजा करने का चलन है। धार्मिक आस्था से जुड़े होने के कारण ही इस वृक्ष को आमतौर पर काटा नहीं जाता है।
पीपल का वानस्पतिक नाम फाइकस रिलिजियोसा है। यह वृक्ष मंदिरों के आसपास अथवा सड़कों के किनारे अधिक मिलता है। यह भी है कि जहां पीपल का वृक्ष होता है, वहीं लोग पूजा-आरती शुरू करके उस स्थान को मंदिर में बदल देते हैं। हिंदू और बौद्ध धर्मों में पीपल का अत्यधिक महत्व है। धार्मिकता का केंद्र होने के कारण ही इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम रिलिजियोसा है।
शुष्क जलवायु में कुछ समय के लिए उसके पत्ते झड़ जाते हैं, अन्यथा पूरे वर्ष वह हरा-भरा रहता है। जनवरी से मार्च के बीच उस पर नई पत्तियां आ जाती हैं। ये शुरू में तांबे के रंग की होती हैं, बाद में हरा रंग प्राप्त करती हैं। इन पत्तों का आकार हृदय जैसा होता है। उनका सिरा लंबा और नुकीला होता है। इस कारण से बारिश में पत्तों पर लग गया पानी पत्ते के सिरे के जरिए जल्दी ही उतर जाता है। इन पत्तों का डंठल हल्का व चपटा होता है और टहनी से वह लचीले रूप से जुड़ा रहता है। इस कारण से पत्ते सदैव हिलते रहते हैं और हल्की सी हवा में भी पीपल के पेड़ से सरसराहट की तेज ध्वनि आती है। इन पत्तों की सतह खूब चमकीली होती है और चंद्रमा के प्रकाश में तीव्रता से झिलमिलाती हैं। सरसराहट और चमकीले पत्तों के कारण रात को इस विशाल वृक्ष का रूप सचमुच डरावना हो जाता है। शायद इसीलिए लोग मानने लगे कि इस वृक्ष में भूत-पिशाच का वास होता है।
पीपल के फूल आमतौर पर बाहर से दिखाई नहीं देते हैं। फल अप्रैल-मई में लगते हैं। वे गुच्छों के रूप में तने से चिपके रहते हैं। पकने पर उनका रंग गहरा बैंगनी हो जाता है। पशु-पक्षी इन्हें बड़े चाव से खाते हैं।
पीपल दीर्घायु वाला वृक्ष है। श्रीलंका में एक पीपल दो हजार वर्षों से भी पुराना बताया जाता है। उसे भारत से ही वहां ले जाया गया था। पीपल में सूखी जलवायु झेलने की अद्भुत क्षमता होती है।
पीपल की एक विशेषता और है। वह यह कि पीपल जमीन में कठिनाई से उग पाता है। लेकिन पुराने मकानों, दीवारों अथवा दूसरे वृक्षों पर वह आसानी से जड़ें उतार लेता है। इन जगहों पर उसके बीज पक्षियों के जरिए पहुंचते हैं। जब पीपल किसी और वृक्ष पर उगने लगता है, तो वह धीरे-धीरे उस वृक्ष का दम घोंट देता है और उसका स्थान ले लेता है। जंगलों में इसके बहुत से उदाहरण देखने को मिलते हैं। यदि मकानों पर उग आए पीपल को रहने दिया जाए, तो उसकी जड़ें मकान भर में फैल जाएंगी और अंततः मकान खंडहर में बदल जाएगा।
पीपल जिस वनस्पति-समूह में है, उसी में एक और विशाल और परिचित वृक्ष है, बरगद, पर उसके बारे में किसी अन्य लेख में।
सर जी, सफ़ेद पेज पर आप सफ़ेद से लिख रहे हैं:)
जवाब देंहटाएंaap ke suzaw ke liya dhanaywad ///////// sahkary ki apeksha
जवाब देंहटाएंchalta hai koi bhi kaisa bhi likhe. aap dono ki sanwad me may kyon bolu bi bi.......
जवाब देंहटाएं